फूलन देवी : चंबल से निकलकर संसद तक का सफर तय करने वाली ‘बैंडिट क्वीन’ को बदले की आग ने बनाया डकैत
फूलन देवी : चंबल से निकलकर संसद तक का सफर तय करने वाली ‘बैंडिट क्वीन’ को बदले की आग ने बनाया डकैत
नई दिल्ली : हिंदुस्तान में जब भी डाकुओं का जिक्र होता तो चंबल याद आता है. लोगों को चंबल के बीहड़ों के डाकूओं के नाम याद आने लगते हैं. इन्हीं में से एक नाम था फूलन देवी. चंबल फूलन के बिना अधूरा है और फूलन चंबल के बिना अधूरी हैं. एक समय हुआ करता था जब फूलन देवी के नाम से पूरे चंबल में दशहत हुआ करती थी. उनके नाम से पुलिस भी कांप जाती थी. पूरा का पूरा बीहड़ कांप उठता था. 80 के दशक में फूलन देवी के नाम पर सरकार तक हिल जाती थी.
30-40 साल बड़े आदमी से फूलन देवी की शादी
बचपन एक ऐसे अवस्था होती है जहां जाति और धर्म कोई मायने नहीं रखते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के जालौन के घूरा का पुरवा में 10 अगस्त 1963 को 'मल्लाह जाति' में जन्मी फूलन देवी का बचपन ऐसा नहीं था. ऊंची जातियों के लोग उनके परिवार को हेय की दृष्टि से देखा करते थे. वे गांव में मां-बाप और बहनों के साथ रहती थी. उनका परिवार बहुत गरीब था. उनका बचपन संघर्षो के बीच बीता था, मात्र 11 साल की उम्र में 30-40 साल बड़े आदमी से फूलन देवी की शादी कर दी गई थी. हालांकि, कुछ समय के बाद फूलन को उसके पति ने छोड़ दिया.
रेप ने फूलन को जुल्म की दुनिया में कूदने पर मज़बूर किया
फूलन के डकैत बनाने के पीछे बहुत से कारण थे. बचपन में हुए अत्याचार, पिता की जमीन को और सगे चाचा द्वारा हड़प लेना. उसके बूढ़े पति और श्रीराम ठाकुर के गैंग द्वारा रेप ने फूलन को जुल्म की दुनिया में कूदने पर मज़बूर किया. इतनी यातनाएं सहने के बाद वह चंबल के बीहड़ो में कूद पड़ीं थी, जिस वक़्त फूलन देवी ने चंबल के बीहड़ो में कदम रखा. उस वक़्त विक्रम मल्लाह गैंग की तूती बोलती थी. लेकिन समय का पहिया जल्दी है घूम गया, अब बीहड़ो में सिर्फ एक नाम गूंजने लगा वो था फूलन देवी. अगर अपने ऊपर हुए जुर्मों का बदला फूलन देवी ने नहीं लिया होता तो शायद उनका नाम कहीं गुम हो जाता.
क्या था बेहमई हत्याकांड जिसने फूलन देवी को बैंडिट क्वीन बना दिया
इस हत्याकांड ने फूलन देवी को बैंडिट क्वीन की उपाधि दी. अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए 14 फरवरी 1981 को फूलन ने अपने 35 साथियों के साथ बेहमई के 26 लोगों पर धुआंधार गोलियां चलायीं थीं. इनमें से उस वक़्त 20 लोगों की मौत हो गई थी. फूलन ने बेहमई हत्याकांड को अंजाम दिया था. वही मुख्य आरोपी थीं. इसी घटना को अंजाम देने के बाद फूलन देवी बैंडिट क्वीन कहलाने लगी, आगे चलकर उन पर बैंडिट क्वीन फिल्म भी बनी. उस वक़्त बेहमई कांड के 2 साल बाद भी पुलिस फूलन देवी को नहीं पकड़ पाई थीं.
मध्य प्रदेश सरकार के सामने आत्मसमर्पण
साल 1983 में फूलन देवी ने आत्मसमर्पण कर दिया. उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सामने आत्मसमर्पण किया. उन्होंने हज़ारों लोगों की भीड़ के सामने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के एक समारोह में हथियार डाले थे. फूलन देवी ने आत्मसमर्पण को लेकर एक शर्त रखी थीं कि वह पुलिस के अधिकारियों के सामने हथियार नहीं रखेगीं.
डकैत से राजनेता बनाने तक का सफर
फूलन देवी को राजनीति में लाने का श्रेय समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव को जाता है मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया. 1994 में फूलन देवी जेल से छूट गईं. इसे बाद उनकी उम्मेद सिंह से शादी हो गई. वर्ष 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और संसद पहुंच गयी. वे यूपी के मिर्जापुर से सांसद बनीं. हालांकि, साल 1998 के लोकसभा चुनाव में हार गईं परन्तु 1999 में मिर्जापुर से जीत गईं.
साल 2001, 25 जुलाई के दिन शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति फूलन से मिलने आया. उसने कहा कि वह फूलन के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ेगा, फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी.
फूलन देवी को जनता ने दो बार चुनकर लोकसभा भेजा. लेकिन वर्ष 2001 में मात्र 38 साल की उम्र में दिल्ली में फूलन देवी की हत्या कर दी गई.
फूलन देवी के जीवन की कहानी को फिल्म निर्देशक शेखर कपूर ने 'बैंडिन क्वीन' फिल्म बनाकर रील लाइफ को दिखाया इसे बहुत लोकप्रियता मिली.
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